मनुष्य जैसा भाव करता है, वैसा ही हो जाता है।
दूसरों को पीड़ा न देना ही मानव धर्म है।
दूसरों को पीड़ा न देना ही मानव धर्म है।
दूसरों को पीड़ा न देना ही मानव धर्म है।
वो माता-पिता ही हैं, जिनसे आपने मुस्कुराना सीखा !
कोई ताबीज ऐसा दो की मैं चालाक हो जाऊं,
बहुत नुकसान देती है मुझे ये सादगी मेरी .!
मूर्ख मनुष्य क्रोध को जोर-शोर से प्रकट करता हैं,
किंतु बुद्धिमान शांति से उसे वश में करता है ।
सामने वाला गुस्से में है तो आप चुप रहिए !
वह थोड़ी देर बाद खुद चुप हो जाएगा !!
लोगों के साथ सलूक करते वक्त याद रखिये कि आप तर्कशील प्राणियों के साथ नहीं, बल्कि भावनात्मक प्राणियों के साथ काम कर रहे हैं ।
रिश्ता दिल में होना चाहिए शब्दों में नहीं और
नाराजगी शब्दों में होनी चाहिए दिल में नहीं।
हर किसी को खुश रखना शायद हमारे बस में न हो पर
किसी को हमारी वजह से दुःख न पहुँचे यह तो हमारे बस में है !
“श्रद्धा” ज्ञान देती है,
“नम्रता” मान देती है,
“योग्यता” स्थान देती है,
तीनों मिल जाएँ तो व्यक्ति को हरजगह “सम्मान” देती हैं !
हर किसी को खुश रखना शायद हमारे बस में न हो पर
किसी को हमारी वजह से दुःख न पहुँचे यह तो हमारे बस में है !
किसी का सरल स्वभाव उसकी कमज़ोरी नही होता है।
मेरे पापा ने एक बार मुझे बहुत जोर से मारा था !
अब अच्छा लगता है याद करके !
उस वक़्त क्यूँ नहीं लगा ? :)
ना तो इतने कड़वे बनो की कोई थूक दे,
और ना ही इतने मीठे बनो की कोई निगल जाये।
मौन एक साधना है,
और सोच समझ कर बोलना एक कला है …
हमेशा दिमाग खुला और दिल को दयालु रखें।
ज्ञानयोगी की तरह सोचें,
कर्मयोगी की तरह पुरुषार्थ करें,
और भक्तियोगी की तरह सहृदयता उभारें।
एक बेहतर पिता नहीं बताता की कैसे जीना है,
बल्कि वह उस तरह से जीता है और दिखाता है कैसे जीना है।
इस तरह से अपना व्यवहार रखना चाहिए कि
अगर कोई तुम्हारे बारे में बुरा भी कहे,
तो कोई भी उस पर विश्वास न करे।